Shaandaar baat likhee hai sirjee kya kahna ! Meree barelee meri shaan kahne ka andaaz gaerv ke sanjeedgee ko bade sundar dhang se sanjoye hai. ahaa ! shabd pushteekar zaroor haTa deven taaki tippani karne men aasaanee ho. o.k.
धीरू भाई, मैं बरेली का रहने वाला तो नहीं लेकिन कुछ साल अपनी नौकरी के उस शहर में जरूर गुजारे हैं। सचमुच, बरेली शहर की मैं जितनी तारीफ करूं कम है। मेरी तमाम यादें वहां से वाबस्ता हैं। शायद वहां के कुछ पत्रकारों, नेताओ, अफसरों और शहर के अन्य लोगों को मेरा नाम अब भी याद हो। आज भी मन होता है कि बरेली लौट चलूं और अयूब खां चौराहे पर किसी ठेले के पास खड़े होकर चाय पीऊं। कभी मन होता है कि बड़ा बाजार से निकलते हुए गढ़ैया की संकरी गलियों में खो जाऊं। कभी मन होता है कि खानकाहे नियाजिया जाकर वहां के संगीत सम्मेलन की खैर खबर लूं जहां देश के बड़े-बड़े संगीतज्ञों को नजदीक से जानने का मौका मिला। कभी दिल कहता है कि गुलाब नगर बजरिया से निकलकर उस घर में फिर जाऊं जहां मैं रहा करता था और वहां के लोग मुझे बहुत चाहते थे....क्या – क्या लिखें। ऐ बरेली तेरी तहजीब को मेरा भी सलाम।
जनाब हम भी बदायूं के हैं और वाकई आप के मुरीद हो चले.....बरेली खूब रहा .... घूमा हूँ और अब आपसे जल्द ही मिलने की ख्वाहिश हो रही है.....पला बढ़ा लखनऊ में हूँ पर नाता हमेशा रहा बरेली से..... कह सकता हूँ कि एक तहजीब के शहर में पैदा हुआ पला बढ़ा और दूसरे से जड़े जुड़ी हैं ........ बरेली आऊंगा तो आपसे ज़रूर मिलूंगा मेरा संपर्क है.....9310797184
9 टिप्पणियां:
Shaandaar baat likhee hai sirjee kya kahna ! Meree barelee meri shaan kahne ka andaaz gaerv ke sanjeedgee ko bade sundar dhang se sanjoye hai. ahaa ! shabd pushteekar zaroor haTa deven taaki tippani karne men aasaanee ho. o.k.
आपको बरेली वालो की मुबारकवाद
सुंदर प्रस्तुति - चुन्ना मियाँ के मन्दिर का ज़िक्र भी डाला जा सकता है. धन्यवाद!
धीरू भाई, मैं बरेली का रहने वाला तो नहीं लेकिन कुछ साल अपनी नौकरी के उस शहर में जरूर गुजारे हैं। सचमुच, बरेली शहर की मैं जितनी तारीफ करूं कम है। मेरी तमाम यादें वहां से वाबस्ता हैं। शायद वहां के कुछ पत्रकारों, नेताओ, अफसरों और शहर के अन्य लोगों को मेरा नाम अब भी याद हो। आज भी मन होता है कि बरेली लौट चलूं और अयूब खां चौराहे पर किसी ठेले के पास खड़े होकर चाय पीऊं। कभी मन होता है कि बड़ा बाजार से निकलते हुए गढ़ैया की संकरी गलियों में खो जाऊं। कभी मन होता है कि खानकाहे नियाजिया जाकर वहां के संगीत सम्मेलन की खैर खबर लूं जहां देश के बड़े-बड़े संगीतज्ञों को नजदीक से जानने का मौका मिला। कभी दिल कहता है कि गुलाब नगर बजरिया से निकलकर उस घर में फिर जाऊं जहां मैं रहा करता था और वहां के लोग मुझे बहुत चाहते थे....क्या – क्या लिखें। ऐ बरेली तेरी तहजीब को मेरा भी सलाम।
... बरेली को नमस्कार!
जनाब हम भी बदायूं के हैं और वाकई आप के मुरीद हो चले.....बरेली खूब रहा .... घूमा हूँ और अब आपसे जल्द ही मिलने की ख्वाहिश हो रही है.....पला बढ़ा लखनऊ में हूँ पर नाता हमेशा रहा बरेली से.....
कह सकता हूँ कि एक तहजीब के शहर में पैदा हुआ पला बढ़ा और दूसरे से जड़े जुड़ी हैं ........
बरेली आऊंगा तो आपसे ज़रूर मिलूंगा
मेरा संपर्क है.....9310797184
Great. Why you stopped posting. Please continue...
ये प्रयास बहुत अच्छा लगा धीरू भाई। बरेली मुझे भी बहुत पसंद है। इस पर बेहतरीन, चुनींदा जानकारियों को तसल्ली और करीने से पेश करते रहिए, हम आते रहेंगे।
धीरू सिंह जी !
आपके विचारों को सलाम
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